'
मौत तू एक कविता है, सुकूँ का पैग़ाम है
हर दर्द की आखिरी हद पे तेरा सलाम है
साँसों की ख़ामोशी में छुपा है तेरा असर
जैसे हर धड़कन का, एक खोया पैग़ाम है
दिन रात के दरमियाँ, इक ठहराव सा हो
उजाले में ढूँढते, अँधेरे का मुक़ाम है
रूह का सफ़र जब जिस्म से जुदा हो जाए
तू सुकूँ के शहर का, मुक़म्मल आयाम है
मुझसे तूने किया है, ख़ामोश वादा कोई
मिलूँगा तुझसे वहीं, जहाँ तेरा क़याम है
No comments:
Post a Comment