Thursday 18 February 2016

ग़ज़ल - My Couplet Of Life



































Penned By Narayan-Chandra Rauf

शायर: नारायण-चन्द्र रउफ 

पलके शर्म से झुकती हो तो ग़ज़ल होती है 
अँधेरा दरीचों से गुज़रती हो तो ग़ज़ल होती है 

ठुकराये हमे की वो दिल चूर चूर कर दे 
इशक़-दी-चूरे चुभती हो तो ग़ज़ल होती है 

लहजे उमड़ते हैं कैसे हमे नहीं मालूम के  
सीने में आस जलती हो तो ग़ज़ल होती है 

आसूँ आँखों से बहती हो तो ग़ज़ल होती है
बनके मोती ढलती हो तो ग़ज़ल होती है

 


Thursday 11 February 2016

मिठास उन होटों की - Those Candy Lips

























Penned By Narayan-Chandra Rauf

शायर: नारायण-चंद्र  रऊफ  

नशा उन आँखों कि क्या कहिये 
बूँद इक शराब की सी है 

ये कहाँ आ गए हम के ये जगह 
पहली मुलाक़ात की सी है 

मिठास उन होठों की क्या कहिये 
बूंदे आब-ऐ-ह्यात  की सी है 

नज़ाकत उन बोलो की क्या कहिये 
फ़ज़ा मे गूंजती रबाब की सी है 

(Incomplete)

Monday 1 February 2016

#Myntra Musings - छुपा चाँद


Penned By Narayan-Chandra Rauf

शायर: नारायण-चन्द्र रऊफ  

आते आते एक जाम सा रह गया 
उन आँखों में कुछ शर्माता रह गया 

वो बोल रही थी मैं बोल रहा था 
सिवा उसके मैं बोलता रह गया 

सामने से मेरे वो गुज़र गया 
मै था की बस देखता रह गया 

न जाने कहाँ चाँद मेरा छुप गया 
सारी रात उसको ढूंढ़ता रह गया