Tuesday 7 June 2016

DRT Musings - ChandraYini


शायर: नारायण-चन्द्र रउफ 

चेहरा उसका गुलाब जैसा है
एक हस्सीन ख्वाब जैसा है

नशा ही नशा है ग़ालिब
हर अंग शराब जैसा है

आँखों की हक़ीक़त क्या कहूँ
खुले किताब जैसा है

उड़ता जाए हवाओं में जानिब
लटें बहते चनाब जैसा है

होते गम नहीं क्यों खाक मेरे
गर वो आफताब जैसा है

Friday 3 June 2016

मुफलिस लोग - The Office Lies



सच्चाई को जाने ऐसा राज़दाँ  नहीं मिलता
कमी तो झूठ की नहीं झूठ कहा नहीं मिलता

प्यार के बदले प्यार हम बाँटते चले गए
हम जैसा मगर मेहरबान नहीं मिलता

उम्मीद थी की रहनुमा लेंगे बचा हमे
वो नगमा हूँ जिसे कद्र-दां  नहीं मिलता

बके जाते हैं बे-इल्म बदजात मुफलिस लोग
ढूंढने जाओ उनमे  कुछ अच्छा नहीं मिलता

जो फैसला न कर सके वो रहनुमा कैसा फिर
कोई मसले के सिवा मेहरबाँ नहीं मिलता

दूर चलते हैं कही मेरे हम-नफस  यहाँ  
सहारा जीने का  मेहरबां  नहीं मिलता