Penned By Narayan-Chandra Rauf
शायर: नारायण-चन्द्र रऊफ
आते आते एक जाम सा रह गया
उन आँखों में कुछ शर्माता रह गया
वो बोल रही थी मैं बोल रहा था
सिवा उसके मैं बोलता रह गया
सामने से मेरे वो गुज़र गया
मै था की बस देखता रह गया
न जाने कहाँ चाँद मेरा छुप गया
सारी रात उसको ढूंढ़ता रह गया
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