Thursday 18 February 2016

ग़ज़ल - My Couplet Of Life



































Penned By Narayan-Chandra Rauf

शायर: नारायण-चन्द्र रउफ 

पलके शर्म से झुकती हो तो ग़ज़ल होती है 
अँधेरा दरीचों से गुज़रती हो तो ग़ज़ल होती है 

ठुकराये हमे की वो दिल चूर चूर कर दे 
इशक़-दी-चूरे चुभती हो तो ग़ज़ल होती है 

लहजे उमड़ते हैं कैसे हमे नहीं मालूम के  
सीने में आस जलती हो तो ग़ज़ल होती है 

आसूँ आँखों से बहती हो तो ग़ज़ल होती है
बनके मोती ढलती हो तो ग़ज़ल होती है

 


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