Penned By Narayan-Chandra Rauf
शायर: नारायण-चन्द्र रऊफ
ज़िक्र उसका कल दोस्तों में था
वो रूह-ऐ -माहताब सुर्खियों में था
मचल रहे थे ऐब में डूबे हुए मिज़ाज़
चर्चा उसका जो दुश्मनो में था
पूछ रहा था मुझे यह क्या हुआ कैसे हुआ
चाँद रात का सुबह हैरतो में था
कश लगायी मैंने भी खुशियों की बेशुमार
एक नाम धुंदला मेरा परस्तारो में था
वो कैसी चमक थी की आँख उसके कारे हुए
सिहाई का रंग मानो नूर के धारो में था
ढूढ़ता निकल पड़ा हर गली हर चौराहों में
खरीदने अख़बार बिकता बाज़ारों में था
Note: Chamak here means camera flash ...
मचल रहे थे ऐब में डूबे हुए मिज़ाज़
चर्चा उसका जो दुश्मनो में था
पूछ रहा था मुझे यह क्या हुआ कैसे हुआ
चाँद रात का सुबह हैरतो में था
कश लगायी मैंने भी खुशियों की बेशुमार
एक नाम धुंदला मेरा परस्तारो में था
वो कैसी चमक थी की आँख उसके कारे हुए
सिहाई का रंग मानो नूर के धारो में था
ढूढ़ता निकल पड़ा हर गली हर चौराहों में
खरीदने अख़बार बिकता बाज़ारों में था
Note: Chamak here means camera flash ...
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