शायर: नारायण-चन्द्र रऊफ
Penned By Narayan-Chandra Rauf
गोद में ढाये श्याम को है मगर नज़र नहीं आती
बादलों से लिपटी चन्द्र चकोरी नज़र नहीं आती
जी रहे हैं कैसे जानने की कोशिश है कभी
कानो पे उड़कर उनकी खबर नहीं आती
यूँ तो तस्वीर ऐ सालगिरह का इंतेज़ार है लेकिन
जहाँ तक नज़र जाये नज़र नहीं आती
इसी उम्मीद मे डूबे डूबे खोए खोए से रेह्ते है
अब तो होश ओ खिरद दो दो पहर नहीं आती
ये दरखुवास्ते इल्लतिजाये रऊफ सताती है
कभी उनको रहम मुझपर मेहज नहीं आती
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