सच्चाई को जाने ऐसा राज़दाँ नहीं मिलता
कमी तो झूठ की नहीं झूठ कहा नहीं मिलता
प्यार के बदले प्यार हम बाँटते चले गए
हम जैसा मगर मेहरबान नहीं मिलता
उम्मीद थी की रहनुमा लेंगे बचा हमे
वो नगमा हूँ जिसे कद्र-दां नहीं मिलता
बके जाते हैं बे-इल्म बदजात मुफलिस लोग
ढूंढने जाओ उनमे कुछ अच्छा नहीं मिलता
जो फैसला न कर सके वो रहनुमा कैसा फिर
कोई मसले के सिवा मेहरबाँ नहीं मिलता
दूर चलते हैं कही मेरे हम-नफस यहाँ
सहारा जीने का मेहरबां नहीं मिलता
No comments:
Post a Comment