शायर: नारायण-चन्द्र रउफ
चेहरा उसका गुलाब जैसा है
एक हस्सीन ख्वाब जैसा है
नशा ही नशा है ग़ालिब
हर अंग शराब जैसा है
आँखों की हक़ीक़त क्या कहूँ
खुले किताब जैसा है
उड़ता जाए हवाओं में जानिब
लटें बहते चनाब जैसा है
होते गम नहीं क्यों खाक मेरे
गर वो आफताब जैसा है
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