Penned By Narayan-Chandra Rauf
शायर: नारायण-चन्द्र रऊफ
कल रात एक ही सपना बार बार यही देख रहा था
चाबियाँ घर की मेरी साडी में वो जमाये रहा था
बर्तन मेज़ बिस्तर कपडे हर चीज़ घर की मेरी
अपना समझ संभाले अपनाये रहा था
रूठ कर फर्श पर जब लेटे आहे भर रहा था
भीगे बोलों से अपने मुझे मनाये रहा था
मेज़ में फूल सजाते गुनगुनाते निकली थी वो
बिस्तर में आकर मस्ती मेरी सजाये रहा था
आगोश में नन्हे को लिये करीब आ गयी थी जब
डैडी डैडी बोल खुश्क आहें उसकी बुझाए रहा था
मालूम जब हुआ बस था वो एक हसीन सपना
अपने बिस्तर में तब अपने को जगाये रहा था
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