Penned By Narayan-Chandra Raufशायर: नारायण-चन्द्र रऊफ
मेरे सवाल का जवाब मेरे सामने था
कल हुस्न-ए -माहताब मेरे सामने था
खुली किताब थी बयाँ हो रही थी आशिकी
पढ़ रहे थे लोग नया बाब मेरे सामने था
मुस्कान उनकी बचा ले गयी मुझे वर्ना
आबजू सामने सैलाब मेरे सामने था
किसी और नाज़नीन पे नज़र क्यों जाये
माबूद मेरा माहताब मेरे सामने था
नीले काले लिबास पहने खड़ा वो सामने था
जैसे लिबास-अल-किताब मेरा सामने था
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