Friday, 1 July 2016

Sirat Azan Ki Ibarat - The Divine Nature


















शायर: नारायण-चन्द्र रऊफ  

एक लड़ी जिसका नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है

आँखो की वो इबादत
गुम है गुम है गुम है

कदमो तले उसके जन्नत
गुम है गुम है गुम है

सूरत उसकी क़यामत
गुम है गुम है गुम है

सीरत अज़ान की इबारत
गुम है गुम है गुम है

हस्ती है तो गुलज़ार खिलते
चलती है तो मल्हार सिलते
गुम है गुम है गुम है

कद है दीवार शिवलो की तरह
मासूम मेरे नग़मों की तरह 
बातें दिलों की वह समझती है
आँखे दो चार जब सुलगती है

एक लड़ी जिसका नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है

Reason for this poem:

I penned this when I heard the extreme pain she underwent .... but where, which place? .... I wouldn't discuss much ...

I ask, God why she has to go through this hell when You gave her a nature just as divine as the hymns ...

सीरत अज़ान की इबारत
गुम है गुम है गुम है

1 comment:

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