Penned By Narayan-Chandra Rauf
शायर: नारायण-चन्द्र रऊफ
मंडवे तले अमीर के दो दिल खिल रहे है
जुस्तुजू जिसकी थी वो दिल मिल रहे है
यह कैसी अजीब हक़ीक़त हैं
रेतो पे फूल खिल रहे हैं
बात दिल की ज़ुबाँ पे आती हैं लेकिन
न जाने ये होठ क्यों सिल रहे है
यह कैसी अजीब हक़ीक़त हैं
के रेतो पे फूल खिल रहे हैं
कोशिश छिपाने की है लेकिन
राज़-ए-दिल खुल रहे हैं
यह कैसी अजीब हक़ीक़त हैं
के रेतो पे फूल खिल रहे हैं
फूट फ़ूट खिल रही है आशिकी
घुट घुट उम्मीदे मर रहे है
यह कैसी अजीब हक़ीक़त हैं
के रेतो पे फूल खिल रहे हैं
Reason for the poem
I wouldn't explain much. The picture silently speaks loudly ... seeing each other through ... at a very rich firm ...
Saw her after UB AGM ...
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